Friday, December 5, 2008

Which side I am on ?

“I don’t take sides because there are no sides... the only side I am on is ‘This will continue if we don’t learn to forgive’। When you take sides you only see one perspective, and that misleads.”

-Anurag Kashyap

Wednesday, December 3, 2008

मुंबई अटैक !

मुंबई अटैक! जिसने जाने कितने ही बेक़सूर, बेगुनाह लोगों की ज़िन्दगी में हलचल मचा दीवैसे कोई नईं बात तो नही है ऐसे ही मर जाना हमारे देश में लोगों का। हाँ पर मारने का तरीका एकदम चौकाने वाला था। इस बार देश की औधोदिक राजधानी को निशाना बनाया गया है और उसमे भी "होटल ताज" जैसी जगह को जिसे की हमारी मीडिया हम भारतियों के गौरव और सम्मान का प्रतीक बता रही है। वैसे यह मुझे इन हमलों के बात ही पता चला कि होटल ताज का हम देशवासियों के लिए कितना महत्व है।

हमारा देश आज शर्मशार है क्योंकि वो बाहर से आए हमारे विदेशी मेहमानों को सुरक्षा मुहैया नही करवा पाया, जोकि होना भी चाहिएपर काश हमें थोडी शर्म भुकमरी से हमारे देश में मर रहे बच्चों की बात पर भी जातीखैर इन बातों को अभी छोड़ भी दे और इस हमले की ही बात पर गौर करें तो सारी ऊँगलियाँ हमेशा की तरह पाकिस्तान पर उठायीं जा रही है। जैसा कि सियासती गहमा गहमी से साफ़ है, माहौल भी ऐसा बनता नज़र रहा है जैसा कि 9/11 के बाद अमेरिका में अफगानिस्तान के ख़िलाफ़ बन रहा थाचलिए यह बात मान भी लें कि आतंकवादियों ने ट्रेनिंग पाकिस्तान में ली और उसमें उनकी सेना के कुछ लोग भी शामिल रहे थे, पर इसका यह मतलब तो नही कि हम अपनी तरफ़ से पाकिस्तान में चल रहे कैम्पस पर हमला कर दें। और वो भी तब जबकि उस देश के साथ युद्ध का खतरा हो। आज जब समय हमें पाकिस्तान जो ख़ुद आतंकवाद से लड़ रहा है को साथ लेकर इस समस्या से निपटने का है तो इस तरह के विकल्पों पर सोचना बेवकूफी ही होगी।

कुछ लोग इस धारणा को मानते हैं कि हमें पाकिस्तान पर हमला करना चाहिए क्योंकि अमेरिका के अफगानिस्तान पर ऐसा करने के बाद आज तक अमेरिका में कोई बड़ा हमला नही हुआ। उनसे मैं बस यहीं कहना चाहूँगा कि भले ही अमेरिका में कोई हमला नही हुआ पर भारत में तो हुआ। जब मुंबई जल रही थी तो पाकिस्तान में भी बोम्ब फट रहे थे। तो अमेरिका के अफगानिस्तान पर हमले के बाद so called global terror तो कम नही ही हुआ। बल्कि एकदम अलग ही रूप लेकर हमारे सामने आ खड़ा हुआ है। तो यह मान लेना कि पाकिस्तान में चल रहे कैम्पस पर हमला करके हम अपने देश से आतंकवाद को ख़तम कर देंगे, मेरी समझ से तो एक बड़ी भूल है। अगर हमला किया जाता है तो वो बस एक escape route होगा सरकार/ नेताओं के लिए कि उन्होंने कुछ कर दिया हैराजनेता इस बात का सहारा लेकर अपनी नाकामयाबियों पर परदा दाल देंगे और सारा इल्जाम किसी और देश पर मढ़ दिया जाएगा

आतंकवादी हमलों से यहाँ भी आम जनता मरी है और वहां भी आम जनता ही मरेगीकैम्पस में आतंकवादी बैठे नही होंगे, भारतीय हमलों के इंतज़ार मेंआतंकवादियों के ख़त्म होने की बात तो दूर, हमले करके हम आतंकवादियों कि ज़मात में कई नाम और जुडवा देंगे

लम्बी बीमारियों का इलाज़ लंबा होता है। आतंकवाद की समस्या नयी नही है। पर बदकिस्मती ये कि पुराना मर्ज़ होने के बाद भी लोग उसका सही इलाज़ नही ढूँढ पा रहे है। समाज में हर तरफ़ असमानता व भेदभाव है। जिस एक धर्म को इन attacks से जोड़ कर उसे इस्लामिक terrorism का नाम दे दिया गया है, उस धर्म के लोगों की क्या हालत है हमारे समाज में यह किसी से छुपी नही है। लोग कहते हैं ऐसी हालत तो और भी धर्मों को मानने वाले लोगों की है, कई मायनों में उनमे समानता है।

हाँ है, पर उन धर्मों को मानने वाले लोगों को हम terrorist नही बुलाते। उन्हें किराए पर घर और नौकरियां देने से नही हिचकिचाते। उन्हें एक साथ खड़ा देखकर आप सोच में नही पड़ जाते। 100 लोगों की भीड़ से सिर्फ़ एक दाढी और पजामे वाले को ही रोककर उसकी तलाशी नही लेते। दो लोगों का किसी घटना में नाम आने पर उनके गांवों/ शहरों/कॉलेज को आतंकगढ़ का नाम नही दे देते। उनके गली मोहल्लों को मिनी पाकिस्तान नही कहते । उनके केस लड़ने वाले वकीलों की पिटाई नही करते।

कहाँ है समानता? कहाँ है समान न्याय? कैसे रोक सकेंगे हम आतंकवाद को, आंखों में पट्टी बांधकर, बिना न्याय के। और न्याय करना क्या सिर्फ़ अदालतों का काम है? कब हम एक दूसरे से न्याय करना सीखेंगे। कब एक देश के आम आदमी दूसरे देश के आम आदमी से न्याय करना सीखेंगे? कब हम यह जानेंगे कि आतंकवाद से लड़ने की चाबी सरकारों के पास नही, हमारे पास है?

हमारे देश में कई लोगों को पाकिस्तान पर हमला कर आतंकवाद मिटाने की बात का समर्थन करते देखकर तो ऐसा नही लगता की वो दिन पास है। मेरे लिए तो पाकिस्तान में हमला होने की सूरत में मरने वाला आम आदमी भी उतना ही अज़ीज़ होगा जितना कि मुंबई या भारत में कहीं और हुए हमले में मरे लोग।

Tuesday, October 28, 2008

हमारी साँसों के पहरेदार

कितना जरूरी है हम सभी के लिए साँस लेना ऐसी साँस जो साफ़ भी हो मुझे याद हैं इस साल जब हमारे नए साथियों ने होस्टल ज्वाइन किया तो सबसे पहले उनका स्वागत हाल में फैले गंदे पानी और बदबू ने किया था सीवर लाइन जाम हो जानेसे फैले गंदे पानी से उठ रही सडांध ने लोगों का अपने रूमों और हॉस्टल में रहना ही दूभर कर दिया था उस दौरान ऐसे द्रश्य आम थे जहाँ लोग रूमालों से अपनी अपनी नाक दबाये HEC, हाल ऑफिस और ना जाने किस किसको कोसते नज़र आते थे कईओं ने तो परेशान होकर वार्डेन, DoSA सभी को ईमेल भी ठोक दिया

खैर एक दिन बदबू जाती रही सब ठीक कर दिया गया और लोगों की साँस में साँस आयी चार दिनों में शायद हम सभी को यह एहसास हो गया कि अगर साँस बदबूदार हो तो कितनी भारी लगती है और कितनी बैचैनी पैदा करती है अब ज़रा सोचिये कि जिस आदमी का काम ही बदबूदार गन्दगी को साफ़ करना हो तो उसकी हर साँस कितनी भारी होगी? जी हाँ, यह लेख उन्हीके बारे में है जो हमारी साँसों को बदबूदार और भारी होने से बचाते हैं वो जो हमारी साँसों के पहरेदार हैं

पिछले कुछ समय से मैं IIT में काम कर रहे सीवर लाइन सफाई कर्मचारियों के संपर्क में रहा हूँ। इनका काम हम सबके लिएकितना महतवपूर्ण है, जाने यह बात हम में से कितने लोग जानते और मानते हों। पर इनके काम करने के तरीके और इनकीकार्य स्थिति के बारे में जानकारी और समझ शायद कुछ एक के ही पास हो जो थोडी बहुत समझ इनके काम और इनकी working condition के बारे में मैं बना पाया हूँ, वो इस लेख के माध्यम से आप सभी से बांटना चाहूँगा उम्मीद है की आप अपनी साँसों के पहरेदारों का हालचाल जानने में interested हैं

क्या कहते हैं आंकड़े ?

आइये सबसे पहले शुरुआत आंकडों से ही करते हैं आज की तारिख में में हमारे पूरे कैम्पस में सीवर लाइन की सफाई, उनसेजुड़ी शिकायतों उनकी देखरेख करने के लिए केवल 4 daily wage workers कर रहे हैं अगर इसकी तुलना हॉस्टल मेंचल रहे और कामों से की जाए तो एक अलग ही तस्वीर उभरती है
काम

Workers की संख्या

Workers/person

मेस

50 हर एक मेस में

50/400 = 1/8

सफाई कर्मचारी

1 हर एक ब्लाक में

1/54

माली

4 हर एक हाल में

4/400 = 1/100

सीवर सफाई कर्मचारी

4 पूरे कैम्पस में

4/8000 = 1/2000

माना की पूरे कैम्पस की जनसँख्या 8000 है यानी कि हर 2000 लोगों पर एक सफाई कर्मचारी दिल्ली और मुंबई में यहीआंकडा तकरीबन 270 और 439 लोगों पर एक सीवर सफाई कर्मचारी का है इन आंकडो से संस्थान कि सीवर सफाईकर्मचारियों के प्रति उदासीनता साफ़ झलकती है। जहाँ एक और उपरी सुन्दरीकरण से जुड़े कामों को करने के लिए तमामकर्मचारी हैं वहीँ दूसरी और सीवर सफाई के लिए मात्र 4


IIT में कुछ सालों पहले तक इस काम के लिए स्थाई कामगार (permanent workers ) भी थे जब संस्थान ने उनकी भरतीबंद कर दी तो डेली वेज कामगार काम पर लगाये जाने लगे। इन चारों कामगारों में से तीन तो 1989 या 90 के समय से ही संस्थान में काम कर रहे हैं शुरू में इन्हे भी शायद सीधे ही काम पर लगाया हो (आज के मेस डेली वेज workers की तरह) परजैसे जैसे संस्थान में ठेका प्रथा ने जोर पकड़ा, इन कामों को भी ठेके पर दिया जाने लगा गौर तलब बात यह है की इन कामगारों के ठेकेदार तो बदले पर ये लोग पिछले 18-20 सालों से लगातार संस्थान में काम कर रहे हैं

एक और बात जो गौर करने लायक है वो यह की जिस समय इस काम को करने के लिए permanent workers भी थे उससमय सीवर सफाई कर्मचारियों की संख्या 10 के आसपास होती थी और कैम्पस की जनसँख्या आज की अपेक्षा कम हुआकरती थी। पर आज जनसँख्या बढ़ने के साथ इन कामकारों की संख्या घटा दी गयी है।

उनके साधन, औजार और खतरे

काम के दौरान इनके द्वारा उपयोग में लाये जाने वाले औजारों में बांस की एक खपच्ची या फंटी और लोहे की एक छड़ होती है और इनका भी इन्तेजाम उन्हें ख़ुद ही करना पड़ता है इसके अलावा इन्हे ऐसा कुछ भी उपलब्ध नही करवाया जाता जोकि इनके काम को आसान बना सके नाही इन के पास दास्ताने होते हैं और ना ही जूते

ये सीवेज मेनहोल कभी कभी 20 फुट गहरे भी होते हैं और वो भी उपर तक भरे हुए और जब सीवरों को जाम करने वालाकचरा बांस की फंटीयों से नही निकलता तो इन काम्गार्रों को इन सीवरों में उतरना पड़ता है जी हाँ, सदी हुई गन्दगी सेबदबूदार हुए और तमाम जहरीली गैसों से भरे हुए सीवरों में

ये नंगे बदन सिर्फ़ एक कच्छा डाले हुए इन नालियों जिसमें की बहने वाली गन्दगी को देखकर हम आप नाक भों सिकोड़ने लगतेहैं, में घुसते है और उन्हें साफ़ करते हैं

इस सीवरों में जो सबसे खतरनाक चीज़ होती हैं वो है सीवर गैस या हाइड्रोजन सल्फाईड सडे अण्डों सी बदबू वाली यह गैससीधे दिमाग को पहुंचने वाली आक्सीजन पर हमला करती है इसके अलावा जो सबसे बड़ा खतरा है वो है मीथेन गैस ।जहरीली होने के साथ साथ यह विस्फोटक भी होती है इस गैस का पता लगाने का कोई भी यंत्र इस कामगारों को उपलब्ध नहीहै जिस वजह से यह अपने ही कुछ तरीके अपनाते हैं मनेहोल में घुसाने से पहले वो उसका ढक्कन कुछ देर के लिए खोल देतेहैं और फिर माचिस की तीली फेंककर इस गैस का पता लगाते हैं

एक साधन जो इनके मुताबिक इस काम से जुड़े खतरों और कठिनाइयों से लड़ने में इनकी मदद करता है वो है शराब शराब पीकर काम करना इनके लिए कोई नयी बात नही ये सफाई कर्मचारी शराब पीना अपनी मजबूरी बतलातें हैं उम्दा यंत्रों और सुरक्षा साधनों के अभाव में शायद शराब ही उनका आखिरी सहारा है अपने "गंदे" काम को करते समय भी यह शराबपीये रहते हैं ताकि ध्यान रहे की क्या कर रहे हैं

कुछ हादसे

एक आंकड़े के अनुसार पिछले 17 सालों में उग्रवाद से पीड़ित जम्मू और कश्मीर में सुरक्षा बालों और पुलिस के करीब 5100 जवान मारे गए हैं वहीँ दूसरी और अकेले मुंबई में ही पिचले 17 सालों में हुई सफाई कर्मचारियों की मौतों का आंकडा एकअनुमान के मुताबिक 6800 का है यह इस देश की विडम्बना ही कही जायेगी की सोनू और उस जैसे छोटे बच्चों की बोरेवेल मेंफंसने पर पूरा देश टीवी पर आँखें गडा कर बैठ जाता है, संसद हिलने लगती है पर इन सफाई कर्मचारियों की मौतें एक भीब्रेकिंग न्यूज़ नही बनाती


अगर आप इन सफाई कर्मचारियों से बात करें तो ये सभी कम से कम एक ऐसी जानलेवा घटना तो बता ही देंगे जोकि इनके साथ घटी हो एक को तो हमारे डायरेक्टर बंगले में ही खतरनाक गैस लग गयी थी इनमें से एक आज भी अपने साथ सन 89 में काम के दौरान हुए एक एक्सीडेंट जिसमें की उसके पैरों की दो ऊँगलियाँ कट गयीं थी का मेडिकल पर्चा लेकर घूमता है उस घटना का उसे कोई भी मुआवजा नही मिला खैर जिस जगह इन सफाई कर्मचारियों को जरूरी संसाधन और सुरक्षा के बेसिक साधन उपलब्ध नही करवाए जाते, वहां चोट लगने पर इलाज़ और मुआवजे की दरकार बेमानी लगती है

हमारे संस्थान में ही पिछले साल ठेका मजदूरों से जुड़ी तीन मौतों की घटनाएँ सामने आयीं थी ठेका मजदूरों को लेकर संस्थान की नीतियों को देखकर एक कहावत याद आती है कि "जब आग लगे तब कुँआ खोदा जाए" क्योंकि तमाम कमेटियां बनीं, लोगों ने हल्ला भी किया पर जाने क्या किया गया कामगारों के सुरक्षा इंतजामात को लेकर आज भी सीवर सफाई कर्मचारी अपने पुराने तरीकों और साधनों से ही काम कर रहे हैं

मुझे बचपन में बताया गया था कि कोई भी काम छोटा या गन्दा नही होता समाज में हर काम का महत्व है पर अगर समाज और समाज में रहने वाले लोग ऐसे किसी काम का महत्व ना समझें और इन्हे करने वाले लोगों को हिकारत से देखें, उसे उचित समान दें तो कोई क्यों भला अपने काम को अच्छा कहेगा यह भी अपने काम को गन्दा कहते हैं पिछले कई सालों से दिनभर पूरी IIT की सफाई करने के बाद उन्हें मिलता ही क्या है ? सिर्फ़ मिनिमम वेजेस और वो भी unskileed श्रेणी में

20 सालों से लगातार एक ही काम करने के बाद भी unskilled, वाह री IIT कुल मिलाकर उन्हें हर महीने तकरीबन 4000 रुपये मिलते हैं अमेरिका के न्यूयार्क शहर में एक सफाई मजदूर की शूरूआती पगार ही करीब 2500 डॉलर प्रतिमाह होती है जो कि सालों में दोगुनी हो जाती है


एक graduate student को किसी US यूनिवर्सिटी में 1500-2000 डॉलर प्रतिमाह मिलते हैं हमारे देश में यह रकम 15000 रुपये है साफ़ ज़ाहिर है कि उस में सीवर सफाई का काम एक जटिल और ज़रूरी काम माना जाता है वहीं हमारे देश में तमाम असुरक्षाओं के बावजूद यह काम मात्र 4000 रुपये दिलवा पाता है, जो कि आज की इस महंगाई में बस पेट भरने के लिए ही काफ़ी है

यह स्थिति मेरे दिमाग में एक प्रश्न उठाती है कि क्या ये काम कोई भी कर सकता है ? मैं तो नही कर सकता और यकीनन इनके सर पर बैठे सुपरवाइज़ार और ठेकेदार भी नहीं फिर ये काम unskilled या semiskilled काम कैसे हो सकता है ये काम तो highly skilled काम है ये और ना जाने ऐसे ही कितने सवाल इस कामगारों के मन में भी उठते ही होंगे और उन्हें कचोटते होंगे

मेरे पिताजी कोयले कि खदानों में काम करते हैं बचपन में जब वो काम पर जाते तो मुझे एक अजीब सा डर लगा करता था जब शाम को वो घर वापिस जाते तो तब हिमेरी बेचैनी मिटती कुछ सालों पहले मैं उनके साथ एक खदान में गया , तब मेरी समझ में आया कि सच में कितना खतरनाक है उनका शायद यही सब सोचकर उन्होंने हमेशा मुझसे कहा कि कहीं भी काम कर लेना पर कोयला खदानों में मत करना शायद यह सफाई कर्मचारी भी अपने बच्चों से यही कहते हों पर जब इन तीनो के साथ मैंने चौथे सफाई कर्मचारी को देखा तो मेरे इस ख्याल पर एक सवालिया निशान लग गया वो चौथा इनमे से एक का ही बेटा है, जाने क्या मजबूरी हैं उस बाप कि जो जानते बूझते हुए अपने बेटे को इस खतरनाक काम में लगा रहा है

* अमेरिका, मुंबई और दिल्ली के आंकड़े तहलका में छपे एक article से साभार।