Tuesday, June 24, 2008

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

हरिवंशराय बच्चन

ऐसे मैं मन बहलाता हूँ

सोचा करता बैठ अकेले,
गत जीवन के सुख-दुख झेले,
दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

नहीं खोजने जाता मरहम,
होकर अपने प्रति अति निर्मम,
उर के घावों को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

आह निकल मुख से जाती है,
मानव की ही तो छाती है,
लाज नहीं मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

हरिवंशराय
बच्चन

Monday, June 16, 2008

Sabhyata

भवानी प्रसाद मिश्र जी की लिखी यह कविता पर कुछ कहने की जरूरत नही लगती मुझे । जाने कब लिखी गयी हो यह पर आज भी कितनी सही लगती है

मैं असभ्य हूँ क्योंकि खुले नंगे पांवों चलता हूँ
मैं असभ्य हूँ क्योंकि धूल की गोदी में पलता हूँ
मैं असभ्य हूँ क्योंकि चीर कर धरती धान उगाता हूँ
मैं असभ्य हूँ क्योंकि ढोल पर बहुत जोर से गाता हूँ

आप सभ्य हैं क्योंकि हवा में उड़ जाते हैं उपर
आप सभ्य हैं क्योंकि आग बरसा देते हैं भू पर
आप सभ्य हैं क्योंकि धान से भरी आपकी कोठी
आप सभ्य हैं क्योंकि जोर से पढ़ पाते हैं पोथी
आप सभ्य हैं क्योंकि आपके आपके कपडे स्वयं बने हैं
आप सभ्य हैं क्योंकि जबड़े खून सने हैं


आप बड़े चिंतित हैं मेरे पिछड़ेपन के मारे
आप सोचते हैं कि सीखता यह भी ढंग हमारे
मैं उतारना नहीं चाहता जाहिल अपने बाने
धोती-कुरता बहुत ज़ोर से लिपटाए हूं याने!

भवानी प्रसाद मिश्र




Monday, June 9, 2008

Deewarein

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idvaaroM ]zanaa tao hr yauga kI isayaasat hO,
yao duinayaa^M jahaM^ tk hO, [Msaa kI ivarasat hO.


KuiSayaaoM maoM hO camak vaao hI, ASkaoM maoM hO ksak vahI
caaho khIM BaI jaaAao tuma, Pyaar mao hO mahk vahI
hr Aa^MK Sarart hO, hr idla maoM maaohbbat hO.


baccaaoM kI mauskurahToM, maa^M ko idlaaoM kI AahToM
ek saI hOM hr [k jagah, caohraoM kI jagamagaahToM
maOM torI ja$rt hU^M, tuma maorI ja$rt hO.


gaohU^M ka $p ek hO,
jala ka sva$p ek hO
,
Aa^Mgana jauda jauda hI sahI
,
saUrja kI QaUp ek hO
,
maindr maoM jaao maUrt hO
,
maisjad maoM vaao kudrt hO.


idvaaroM ]zanaa tao hr yauga kI isayaasat hO,
yao duinayaa^M jahaM^ tk hO
, [Msaa kI ivarasat hO.



[sa gaIt sao pircaya kranao ko ilayao maoro ima~ rahula ka thoidla sao Sauik``yaa.