Thursday, February 24, 2011

कुत्ते

ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
कि बख़शा गया जिन्हें ज़ौके-गदाई ( भीख माँगने का काम )
ज़माने की फटकार सरमाया ( दौलत ) इनका
जहाँ भर की दुत्कार इनकी कमाई
ना आराम शब को ना राहत सवेरे
गलाज़त ( गन्दगी ) में होते हैं इनके बसेरे
जो बिगड़ें तो एक दूसरे से लड़ा दो
ज़रा एक रोटी का टुकड़ा दिखा दो
ये हर एक की ठोकर खाने वाले
ये फ़ाकों से उकता के मर जाने वाले
ये मज़लूम मख़लक ( जनता ) गर सर उठाये
तो इंसान सब सरकशी (घमंड ) भूल जाए
ये चाहें तो दुनियां को अपना बना लें
ये आकाओं की हड्डियाँ तक चबा लें
कोई इनको एहसासे-ज़िल्लत दिला दे
कोई इनकी सोई हुई दम हिला दे

-फैज़