Saturday, March 14, 2009

गंगा आए कहाँ से, गंगा जाए कहाँ रे

गंगा आए कहाँ से, गंगा जाए कहाँ रे,
लहर आए पानी में जैसे धूप-झांव रे ।

रात कारी, दिन उजियारा
मिल गए दोनों साए,
सांझ ने देखो रंग-रूप के
कैसे भेद मिटाए रे
लहर आए पानी में जैसे धूप-झांव रे

कांच कोई, माटी कोई, रंग-बिरंगे प्याले
प्यास लगे तो एक बराबर
जिसमे पानी डाले रे
लहर आए पानी में जैसे धूप-झांव रे

नाम कोई, बोली कोई,
लाखों रूप और चेहरे,
खोल के देखो प्यार की आखें,
सब तेरे सब मेरे रे,
लहर आए पानी में जैसे धूप-झांव रे

गंगा आए कहाँ से, गंगा जाए कहाँ रे,
लहर आए पानी में जैसे धूप-झांव रे

-काबुलीवाला