गंगा आए कहाँ से, गंगा जाए कहाँ रे,
लहर आए पानी में जैसे धूप-झांव रे ।
रात कारी, दिन उजियारा
मिल गए दोनों साए,
सांझ ने देखो रंग-रूप के
कैसे भेद मिटाए रे
लहर आए पानी में जैसे धूप-झांव रे ।
कांच कोई, माटी कोई, रंग-बिरंगे प्याले
प्यास लगे तो एक बराबर
जिसमे पानी डाले रे
लहर आए पानी में जैसे धूप-झांव रे ।
नाम कोई, बोली कोई,
लाखों रूप और चेहरे,
खोल के देखो प्यार की आखें,
सब तेरे सब मेरे रे,
लहर आए पानी में जैसे धूप-झांव रे ।
गंगा आए कहाँ से, गंगा जाए कहाँ रे,
लहर आए पानी में जैसे धूप-झांव रे ।
-काबुलीवाला
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