मान लो गर आ खड़ी हुई एक दिन
तुम्हारी रोटी
मेरी रोटी के सामने
तो क्या
अपनी रोटी की खातिर
तुम मेरा खून बहाओगे?
फिर क्या मेरे खून से
सनी रोटी खा पाओगे?
अपनी भूख मिटा पाओगे?
तुम कहते हो कि
गर ऐसा न करोगे तो
घर पर बच्चे भूखे मर जायेंगे,
तो क्या मेरे बच्चे बिना रोटी के जी सकते हैं?
क्या उन्हें भूख नही लगती?
वैसे फर्क भी क्या है,
मेरे और तुम्हारे बच्चों में,
दोनों ही घर पर भूखें हैं।
बच्चे तो उनके भरपेट सोते हैं,
जिनके हितों की खातिर,
तुम मेरा खून बहाने को तैयार हो
क्या तुम्हे यह नही लगता कि
जितना फर्क हमारे बच्चों के बीच है,
उतना ही हमारे भी,
या उतना भी नहीं।
हम दोनों ही रोटी कि लडाई लड़ रहे हैं,
वो भी सिर्फ़ दो वक्त की,
और कभी क्या इससे कुछ अधिक
चाहा है हमने?
पर सिर्फ़ इतने के लिए ही
एक दूसरे का खून बहा रहे हैं
हम,
ज़रा सोचों तो
दो वक्त की रोटी की
क्या कीमत
चुका रहे हैं
हम?
पर कीमत आजकल खून की
कहाँ कोई समझता है?
जानते हो बाज़ार में यही
आजकल सस्ता है।
जैसा जिसका मन है
वैसे बहा रहा है,
जाने इसे बहाकर
वो क्या पा रहा है?
खैर उसे जो भी मिले
खून बहता मेरा या तुम्हारा है,
आज तुम मुझे अपने से अलग समझते हो,
इसलिए मेरा खून भी तुम्हे अलग
नज़र आता है,
पर यकीन है मुझको
कि एक दिन तुम मेरी बातें समझोगे।
तब हम मिलजुलकर अपनी रोटी की लडाई लडेंगे,
जो भी रूखी-सूखी होगी
मिल-बांटकर खायेंगे
पर एक-दूसरे का खून
हरगिज़ नही बहायेंगे।
-Vivek