Tuesday, May 12, 2009

अपनी असुरक्षा से


अगर देश की सुरक्षा ऐसे ही होती है
कि बेज़मीरी ज़िन्दगी के लिए शर्त बन जाए
आँख की पुतली में "हाँ" के अलावा कोई भी शब्द
अश्लील हो
और मन बदकार पलों के सामने दंडवत झुक जाए
तो हमें देश की सुरक्षा से खतरा है.

हम तो समझे थे देश को घर सी पवित्र चीज़
जहाँ घुटन नहीं होती
मनुष्य बहती बारिश की गूँज के तरह गलियों में बहता है
गेहूं की बालियों की तरह खेतों में झूमता है
और आसमान की विशालता को अर्थ देता है
हम तो समझे थे देश को आलिंगन जैसे एक अहसास का नाम
हम तो देश को समझे थे मेहनत जैसा नशा कोई
हम तो देश को समझे थे कुर्बानी जैसे वफ़ा
पर जो देश
रूह की ललकार का कारखाना है
पर जो देश उल्लू बनने की प्रयोगशाला है
तो हमें उससे खतरा है

अगर देश का अमन ऐसा होता है
कि कर्जे के पहाडों पर गिरते पत्थरों की तरह टूटता रहे वजूद हमारा
कि तनख्वाहों के मुंह पर थूकती
कीमतों की बेशुमार हंसी
कि अपने लहू में नहाना ही तीर्थ का पुन्य होता है
तो हमें अमन से खतरा है

अगर देश के सुरक्षा ऐसी ही होती है
कि हर हड़ताल को दबाकर अमन को रंग चढ़ता है
कि वीरगति बस सीमायों पर मर के परवान चढ़ती है
कला का फूल बस राजा की खिड़की में ही खिलता है
अफल हुकूमत के कुँए पर जुटकर ही धरती सींचेगी
मेहनत को राजमहल के दरवाज़े पर दस्तक ही बनना है
तो हमें देश के सुरक्षा से खतरा है

-पाश

No comments: