Monday, April 20, 2009

सबसे खतरनाक होता है

मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी लोभ की मुठ्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती

बैठे सोये पकडे जाना - बुरा तो है
डर से चुप रह जाना - बुरा तो है
सबसे खतरनाक नहीं होता .

कपट के शोर में
सही होने पर दब जाना, बुरा तो है
किसी जुगनू की लौ में पढना - बुरा तो है
किटकिटा कर समय काट लेना - बुरा तो है
सबसे खतरनाक नहीं होता .

सबसे खतरनाक होता है
बेजान शांति से भर जाना
ना होना तड़प का, सब सहन कर लेना
घर से निकलना काम पर
और काम से घर लौट आना,
सबसे खतरनाक होता है
हमारे सपनो का मर जाना.

सबसे खतरनाक वो घडी होती है
तुम्हारी कलाई पर चलती हुई भी जो
तुम्हारी नज़र के लिए रुकी होती है .

सबसे खतरनाक वो आँख होती है
सब कुछ देखते हुए भी जो ठंडी बर्फ होती है
जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती है
जो चींजों से उठती अंधेपन की भाप पर फिसल जाती है
जो नित दिख रही साधारणता को पीती हुई
एक बेमतलब दोराह की भूल-भुलैया में खो जाती है.

सबसे खतरनाक वो चाँद होता है
जो हर कत्ल काण्ड के बाद
सूने आँगन में निकलता है
पर तुम्हारी आँखों में मिर्चों सा नहीं चुभता.

सबसे खतरनाक वो गीत होता है
तुम्हारे कानों तक पहुचने के लिए
जो विलाप लांघता है
डरे हुए लोगों के दरवाजों सामने
जो नसेड़ी की खांसी खांसता है.

सबसे खतरनाक वो दिशा होती है
जिसमे आत्मा का सूरज डूब जाता है.
और उसकी मरी हुई धुप की कोई फांस
तुम्हारे जिस्म के पूरब में उतर जाए.

मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी लोभ की मुठ्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती

-शहीद अवतार सिंह पाश

(एक लम्बी कविता से)

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